नथुराम गोडसे की कविता देखना ना भूले सच क्या था

 


वर्षों बाद किसी एक कवि ने दबे सच को फिर से उजागर करने की कोशिश की है ! 

आप सभी  साहित्य प्रेमी पाठकों के लिए कवि की मूल कविता नीचे विस्तार से लिखी गयी है !  

ये कविता आज सुबह से सोशल मीडिया पर भारी संख्या में share की जा रही हैं !


माना गांधी ने कष्ट सहे थे ,    

अपनी पूरी निष्ठा से ।

और भारत प्रख्यात हुआ है,

उनकी अमर प्रतिष्ठा से ॥


किन्तु अहिंसा सत्य कभी,

अपनों पर ही ठन जाता है ।

घी और शहद अमृत हैं पर ,

मिलकर के विष बन जाता है।


अपने सारे निर्णय हम पर,

थोप रहे थे गांधी जी।

तुष्टिकरण के खूनी खंजर,

घोंप रहे थे गांधी जी ॥


महाक्रांति का हर नायक तो,

उनके लिए खिलौना था ।

उनके हठ के आगे,         

जम्बूदीप भी बौना था ॥


इसीलिये भारत अखण्ड, 

अखण्ड भारत का दौर गया ।

भारत से पंजाब, सिंध,

रावलपिंडी,लाहौर गया ॥


तब जाकर के सफल हुए,      

जालिम जिन्ना के मंसूबे।

गांधी जी अपनी जिद में ,

पूरे भारत को ले डूबे॥


भारत के इतिहासकार,

थे चाटुकार दरबारों में ।

अपना सब कुछ बेच चुके थे,

नेहरू के परिवारों में ॥


भारत का सच लिख पाना,

था उनके बस की बात नहीं ।

वैसे भी सूरज को लिख पाना,

जुगनू की औकात नहीं ॥


आजादी का श्रेय नहीं है,    

गांधी के आंदोलन को ।

इन यज्ञों का हव्य बनाया,

शेखर ने पिस्टल गन को ॥


जो जिन्ना जैसे राक्षस से,

मिलने जुलने जाते थे ।

जिनके कपड़े लन्दन, पेरिस,

दुबई में धुलने जाते थे ॥


कायरता का नशा दिया है,

गांधी के पैमाने ने ।

भारत को बर्बाद किया,    

नेहरू के राजघराने ने ॥


हिन्दू अरमानों की जलती,

एक चिता थे गांधी जी ।

कौरव का साथ निभाने वाले,

भीष्म पिता थे गांधी जी ॥


अपनी शर्तों पर आयरविन तक,

को भी झुकवा सकते थे ।

भगत सिंह की फांसी को,     

दो पल में रुकवा सकते थे ।।


मन्दिर में पढ़कर कुरान,              

वो विश्व विजेता बने रहे ।

ऐसा करके मुस्लिम जन,    

मानस के नेता बने रहे ॥


एक नवल गौरव गढ़ने की,

हिम्मत तो करते बापू  ।

मस्जिद में गीता पढ़ने की,

 हिम्मत तो करते बापू ॥


रेलों में, हिन्दू काट-काट कर,

भेज रहे थे पाकिस्तानी ।

टोपी के लिए दुखी थे वे,      

पर चोटी की एक नहीं मानी ॥


मानों फूलों के प्रति ममता,

खतम हो गई माली में ।

गांधी जी दंगों में बैठे थे, 

छिपकर नोवाखाली में ॥


तीन दिवस में श्री राम का,

धीरज संयम टूट गया ।

सौवीं गाली सुन, कान्हा का 

चक्र हाथ से छूट गया ॥


गांधी जी की पाक, परस्ती पर

जब भारत लाचार हुआ ।

तब जाकर नथू,                  

बापू वध को मज़बूर हुआ ॥


गये सभा में गांधी जी,           

करने अंतिम प्रणाम ।

ऐसी गोली मारी गांधी को,

याद आ गए श्री राम ॥


मूक अहिंसा के कारण ही 

भारत का आँचल फट जाता ।

गांधी जीवित होते तो           

फिर देश,  दुबारा बंट जाता ॥


थक गए हैं हम प्रखर सत्य की

अर्थी को ढोते ढोते ।

कितना अच्छा होता जो        

"नेताजी" राष्ट्रपिता होते ॥


नथू को फाँसी लटकाकर 

गांधी जो को न्याय मिला ।

और मेरी भारत माँ को       

बंटवारे का अध्याय मिला ॥


लेकिन जब भी कोई भीष्म 

कौरव का साथ निभाएगा ।

तब तब कोई अर्जुन रण में

उन पर तीर चलाएगा ॥


अगर गोडसे की गोली        

उतरी ना होती सीने में ।

तो हर हिन्दू पढ़ता नमाज ,

फिर मक्का और मदीने में ॥


भारत की बिखरी भूमि

अब तलक समाहित नहीं हुई ।

नथू की रखी अस्थि           

अब तलक प्रवाहित नहीं हुई ॥

इससे पहले अस्थिकलश को 

सिंधु सागर की लहरें सींचे ।

पूरा पाक समाहित कर लो     

इस भगवा झंडे के नीचें ॥

स्त्रोत:- अंतर्जाल (Not Edited)

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